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बड़े बेआबरू हो कर हम तेरे कुचे से निकले
उत्तर परदेश का चुनाव एक फिर से ये साबित कर गया
अगर आप जनता द्वारा दिए गए मोके के दौरान उसकी उमीदों पर खरे नहीं
उतरते तो फिर जनता आप को दोबारा मोका नहीं देगी ,
माया ने जो मायाजाल उ.प्र में में रचा उसमे वह जनता को फसा नहीं पाई .
क्यू की जनता वायदे और प्रलोभन नही काम देखती है
विकास देखती है .
बड़े बड़े पार्क और उनमे हाथी की मूर्तियाँ बनाने से विकास नहीं
विज्ञापन झलकता है ,
अगर जनता का विस्वास जितना है तो भोतिक संसाधनों और जीविका उपार्जन को प्राथमिकता देनी होगी ,
बार बार के कुसासन से परेशान हो कर जनता ने माया को मोका दिया था
लेकिन माया अपने ही जाल में उलझी रही जनता की तरफ ध्यान देने की बजाये
पार्टी के उत्थान में लगी रही
अगर जनता की तरफ ध्यान दिया होता तो पार्टी का उत्थान तो अपने आप हो जाता
अंत में जनता ने माया का व्हाल किया है की माया को कहना ही पड़ेगा की
बड़े बेआबरू हो कर हम तेरे कुचे से निकले
सनम न हम इधर के रहे न उधर के
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